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Principal’s Message

प्राचार्य की संदेश

कलम से…..

विश्व में ही नहीं स्वातन्त्र्योत्तर भारत में भी मूल्य हास तेजी से हो रहा है। परिणामतः राष्ट्रीय जीवन में प्रदूषण व्याप्त हो गया है। मूल्यों की यह संकटग्रस्त स्थिति जीवन के अन्य क्षेत्रों मे व्याप्त है। विकास तथा शान्ति प्रिय जीवन के लिए शिक्षा की प्रक्रिया का पुनः अभिविन्यास किया जाए और उसके माध्यम से ऐसे उद्दात्त मूल्यों की शिक्षा दी जाए जिससे शिक्षित युवक राष्ट्र की सम्पत्ति बन सके। स्वातन्त्र्योत्तर भारत में शिक्षा का प्रसार अत्यन्त तीव्रता से हुआ है। फलतः प्रमाण-पत्र एवं आधिधारियों की संख्या में भी अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हुई है। किन्तु यह परिणाम गुणात्मका की कसौटी पर अपेक्षानुसार खरा और संतोषप्रद नहीं उतरा है। आज वस्तुतः आवश्यकता इस बात की है कि छात्र सोचने, समझने और आचार-विचार के क्षेत्र में संस्कारित एवं उन्नत स्तरों के प्रतिनिधि बनें।

(डॉ0 सन्तोष कुमार सिंह)

प्राचार्य

 

सा विद्या या विमुक्तये, विद्यान्या शिल्पनैपुण्यम् ।।

अर्थात ज्ञान अथवा विद्या से मुक्ति प्राप्त होती है, तथा मनुष्य शिल्प में निपुणता प्राप्त करता है।